पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७५

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भाषा का प्रश्न १७२० थे कि देवनागरी में लिखाकर भेजें। सेवकलाल कृष्णदास का' अनुरोध है- "आपके आने बिना समाज का मंदिर होना कठीन है और सब समाजों का अँगरेजी व हिंदि में (देवनागरी लिपि में) लिखा के कृपा कर भेज देना।" हिंदी की व्याख्या में देवनागरी लिपि का निर्देश इसलिये करना पड़ा कि दक्षिण में यही हिंदी फारसी-लिपि में दक्खिनी के रूप में प्रचलित थी और उर्दू हो जाने पर भी कभी कभी हिंदी के नाम से याद की जाती थी। हैदराबाद ने आज इसकी जगह फसीह उर्दू को पसंद कर लिया है, नहीं तो प्रारंभ में वहाँ 'दक्खिनी' हिंदी का ही प्रचार था । प्रसंगवश इतना स्पष्ट करने की जरूरत इसलिये पड़ी कि वस्तुतः हिंदी ही राष्ट्र- भाषा थी और इसी लिये उसके जानकार मुंबई में भी मौजूद थे, जो हिंदी को देवनागरी में पढ़ते-लिखते थे, फारसी में नहीं । हिंदी ही नहीं, संस्कृत में भी पत्र लिखने के लिये स्वामीजी से आग्रह किया जाता था! - खानदेश के लक्ष्मण गोपाल. देश- मुख की आशा है.- "हम इच्छा करते हैं कि आपके पत्र हमकु सब संस्कृत में आवे सो इच्छा आप पूर्ण कीजिए। इससे हमकु भी संस्कृत पत्र व्यवहार का मार्ग समजा जाएगा । १--पत्र व्यवहार प्रथम भाग पृ० २५० पृ० २४५। » 3