पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७

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भाषा का प्रभ वह प्रांतीय तथा अति सामान्य भाषा थी। निदान निश्चित हुआ कि देववाणी के चलित या मानुपी रूप को ग्रहण किया जाय और उसी में 'बुद्धवचन' का संग्रह भी कर दिया जाय । ब्रह्मपि देश की चलित वाणी में बुद्धवचन का संपादन तो हो गया किंतु मगध के प्रभुत्व एवं मागधी के संसर्ग के कारण उसमें कुछ मागधी रूप भी आ गए। बौद्धों में उक्त पंक्तियों का इतना सम्मान बढ़ा कि बात-बात में उनकी दुहाई दी जाने लगी। नतीजा यह हुआ कि 'पंक्ति' विसधिसा कर पालि' या 'पाली' हो आज भी पंडितमंडली में 'पंक्ति' की चर्चा कुछ कम नहीं होती। जिससे पंक्ति अच्छी तरह लग गई वही चट अच्छा पंडित हो गया। पाली के प्रकृत विवेचन से प्रकट होता है कि वास्तव में पाली पंक्ति या लिखित, भाषा थी। अतः हम उसे कहीं की शुद्ध लपित भाषा नहीं कह सकते। हाँ, इतना अवश्य कह सकते हैं कि वह ब्रह्मर्षि देश की चलित भाषा के आधार पर बनी थी और गई। १–ब्रह्मर्षिदेश की जगह प्रायः मध्यदेश का प्रयोग किया जाता है, पर वह ठीक नहीं है। : मध्यदेश की सीमा बराबर घटती बढ़ती रहती है। पूर्व में कभी प्रयाग और कभी वाराणसी तक मध्यदेश कहा गया है। लेकिन ब्रह्मर्षि देश की सीमा सदाः स्थिर. और शुद्ध पश्चिमी हिंदी के भीतर रही है। मनुस्मृति में लिखा है :- "कुरुक्षेत्रं च मत्स्याश्च पञ्चाला: शूरसेनकाः ।

एष
ब्रह्मर्षिदेशा वैब्रह्मावर्तादनन्तर: । (२११६.)