पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६८

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गलिस समय स्वामी दयानद और उर्दू कर दिया। उन्हें किसी सनदी जवान की जरूरत नहीं पड़ी। उन्होंने स्वयं लिखा है---- यह ग्रंथ 'सत्यार्थप्रकाशबनाया था उस मामय और उससे पूर्व संस्कृत भाषण करने, पठन-पाठन में संस्कृत ही बोलने और जन्मभूमि की मापा गुजराती होने के कारण नुग का इस भाषा का चिशेप परिज्ञान न था इससे भापा अशुद्ध बन गई थी। अब भाषा बोलने और लिखने का अभ्यास हो गया है इसलिये इस ग्रंथ को सापाव्याकरणानुसार शुद्ध करके दूसरी बार छपवाया। स्वामीजी के ग्रंथों में कुछ ऐसे भी हैं जिनकी भाषा पंडितों ने बनाई है। श्री हरविलास सारडा ने ठीक ही कहा कि- "वेदभाष्यों की संस्कृत तो स्वामीजी महाराज की है, घरेलु हिंदी समग्न स्वामीजी के पास काम करनेवाले पंडितों की बनाई हुई है। म्वामीजी के पत्रों से पता चलता है कि स्वामीजी को पंडितों इत्यार्थप्रकाश द्वितीय संस्करण' की भूमिका का प्रारंभ । २-शताब्दी संस्करण, प्रथम भाग, भूमिका पृ० १६ । ३-त्यामो दयानंद के पत्र व्यवहार का संपादन तो स्वर्गीय समी अशानंदजी ने किया पर उनके पत्र और विज्ञापन का संपादन श्री भगवत ( अनुसंधानाध्यन्न दयानंद कालेज, लाहौर ) ने किया। भी स्वामी दयानंद के बहुन ते पत्र अप्रकाशित हैं जिनका प्रकाशन आवश्यक जान पता है।