पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४८

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उचू की उत्पत्ति एकांगी, किताबी या बनावटी हो गई है। अभी उस दिन. 'ठेठ उठू में लिखते समय एक उर्दूदी ने इप के साथ कहा था- "मेरे लिखने का यह ढंग नहीं।" तो फिर उन्होंने वैसा क्यों लिखा ?. उन्हीं के मुं से मुनिए--- "आपकी अनोखी लिखत देख के ध्यान आया ठेठ उर्दू ही में आपसे बातचीत करे और हो सके तो अरबी-फारसी को हाथ न लगा और दिखाऊँ कुलाहल, संपत्ति, अभ्यास, निश्चय जैसे भूले-बिसरे कढ़व बालों को छोड़ के ठेउ उर्दू यों लिखी जा सैयद अबुल्कासिम की 'ठेठ उर्दू' ने सैयद इंशा की हिंदवी छुट' को सामने ला दिया और दिखा दिया कि 'इसलाह जवान' की कृपा से जो पहले 'अच्छे से अच्छे भले लोगों के बोल थे। आज 'भूले-बिसरे ठेठ हो गए। अव कल की कौन कहे। डर है, कहीं सड़ेगाले न साबित कर दिए जायें। हमें तो 'इसलाह जवान के भक्तों से साफ-साफ कह देना है कि यह आपकी फारसी-ष्टि का दोप है जो आस-पास के खड़े शव को ठेठ वाहकर दुलरों के कोप पर छापा डालती है और दूसरों की कमाई का अपनी पूंजी रूमझती है। आपकी इस प्रकृति-या मजाक का कारण आपकी बह टटकी गुलामी है जो अरवियत और फार- 2-हिंदुत्तानी, ( वही ) अक्टूवर सत् १९३६ ई०, पृ० ४६७ । २ानी फेवकी की कहानी ( श्रोता ते शतचीत )