पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४६

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उदू की उत्पत्ति "उस वक्त के किसी हिंदू मुसन्निा की किताव को उठाकर देखिए। वही तज तहरीर है और वही असलूव बयान है इब्तदा में विस्मिल्लाह लिखता है। हम्द व नात न मन्कवत से शुरू करता है। शरई इस्तलाहात तो क्या हदीस व नस कुरान तक बेतकल्लुफ़ लिख जाता है। इन किताबों के मुताल: में किसी तरह मालूम नहीं हो सकता कि यह किसी मुसलमान की लिखी हुई नहीं फिर भी किसी हिंदू को उदृ जबाँदानी की आज तक' सनद न मिली। मौलाना हाली' तक ने कहा--- "दूसरी शर्त यह थी कि डिक्शनरी लिखनेवाला शरीफ़ मुसल. मान हो, क्योंकि खुद देहली में भी फसीह उर्दू सिर्फ मुसलमानों ही की जवान समझी जाती है। हिंदुओं की सोशल हालत उर्दू-ए-मुअल्ला को उनकी मादरी जवान नहीं होने देती।" शायद इसी 'सोशल हालत' को अपनी नाकामयावी का कारण मानकर हिंदुओं ने उर्दू में लिखते समय अपने को पूरा पूरा मुसलमान बना दिया। इसमें उनको यहाँ तक कामयाबी हासिल हुई कि मौलाना हक तक उनके कलाम से उनके हिंदू होने का कोई प्रमाण नहीं दे सकते। फिर भी उर्दू जवान के लिखने में उन्हें कासयात्री नसीब न हुई। लखनऊ के नासिख जस्ताद बन गए। उनके इशारे पर उर्दू नाचने लगी। वे तो देहलवी या नजीब न थे। फिर इस सनद का कारण क्या है ? ---हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी (वहीं) पृ० ४८ पर अवतरित ।