पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४४

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उर्दू की उत्पत्ति यहाँ इतना भर संकेत कर देना है कि उ राजा की ओर से जनता के सिर मढ़ी गई है. दर हकीकत प्रजा की वह चीज. नहीं। इसका सबसे पुष्ट और सरल प्रमाण यह है कि मसीही प्रचारकों ने जनसाधारण में प्रचार के लिये भाषा को अपनाया 'इसलाही जबान' या उर्दू को नहीं । कारण स्पष्ट है। उनके सामने लोक-हृदय का प्रश्न था। रोब जमाना उनका धर्म वे तो जनता का हृदय छूना चाहते थे। परंतु सरकार को शासन करना था। उसके सलाहकार फारसी के आदी थे जो उसी के सहारे अपने को जनता से अलग रख पातेः थे और अपने को बढ़कर सिद्ध कर सकते थे। निदान, यह मानना पड़ता है कि वस्तुत: उर्दू 'तारीक जमानः' का वह तमगा है जो सरकार की ओर से मिलने के कारण एक विशेष महत्व रखता है और उसी की अनुकंपा से सबके लिये आदर का कारण होता है। सरकार ने उसको जो महत्व दिया,, उसका उल्लेख यहाँ न होगा। यहाँ इसी को स्पष्ट कर देना है कि दर हकीकत उर्दू राजभाषा की सगी होने के कारण दरबार में प्रति- टित हुई, कुछ प्रजा की बानी होने के नाते नहीं। प्रजा की यागी को लेकर जो भाषा उसके सामने सैदान में श्री डटी वह वही पुरानी हिंदी थी जिसका बहिष्कार केवल इसलिये कर दिया गया था कि वह प्रजा की भाषा यानी हिंदी थी, फारसी नहीं। भूलना न होगा कि कल जो फारसी को अपनी जवान कहते थे -फारसी को अपनी जवान कहनेवाले मुसलमानों की कमी नहीं ! हमारे यहाँ से उनका तात्पर्य प्रायः फारस या फारसी से होता . .