पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१३६

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उदू की उत्पत्ति भी बाहर देहात में काम नहीं पा सकती थी-दूर की कौन कहे ! इस प्रसंग में मीर साहब की एक बात याद आ गई। उसे भी सुन लीजिए। मार्के की चीज है। मीर साहब "जब लखनऊ चले तो सारी गाड़ी का किराया भी पास न था। लाचार एक श,रहन के साथ शरीक हो गए और दिल्ली को खुदा हाफ़िज़ कहा। थोड़ी दूर आगे चलकर उस शख्स ने कुछ बात की। यह उसकी तरफ से मुंह फेर कर हो वैठे। कुछ देर के बाद फिर उसने बात की। मीर साहब चीबजी होकर बोले कि- .साइव किवलः ! आपने किराया दिया है। वेशक गाड़ी में बैटिए । सगर बातों से क्या तअल्लुक ?' उसने कहा 'हजरत क्या गुजायक: है। राह का शगल है, वातों में ज़रा जी बहलता है।' - मीर साहब बिगड़कर बोले कि खैर, आपका शगल है मेरी जवान खराब होती है।" मीर साहब 'बेदिमाग' कहे जाते हैं। यह उनकी बेदिमागी हो सकती है। पर बात यहीं समाप्त नहीं होती। शेख इमाम- बख्श नासिख, जो आधुनिक उर्दू के विधाता और जवान के पक्के पहलवान हैं, ( इसी पहलवानी के लिये 'नासिख' की उपाधि से विभूपित हैं) अजीमाबाद से ( जो देश में पटना के नाम से प्रसिद्ध है, पर उर्दू में कमी कभी भूले-भटके पटन: के रूप में सुनाई पड़ जाता है ) भाग पड़े। . वह इसलिये नहीं कि वहाँ श्राव-भगत की कमी पड़ी, बल्कि इसलिये कि वहाँ -आवेहयात १० २०५ (मीर साहब का प्रसंग)!