पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/८५

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a भापा-विज्ञान जाता है। इसके पीछे सिकंदर की विजय ने एटिक को निश्चित रूप से राष्ट्रीय बना दिया और वह तभी से काइन डायलेक्टोस (common dialect) कही जाने लगी। इस प्रकार जव एटिक ग्रीस देश भर की लोक-व्यवहार की भाषा हो गई थी तब वह हेलेनिस्टिक ग्रीक कहलाने लगी थी। उसका विशेप वर्धन अलेक्जेंड्रिया में हुआ था। इसी भाषा में ईसाइयों की धर्म-पुस्तक न्यू टेस्टामेंट ( नव विधान ) लिखी गई थी, पर यह परवर्ती श्रीक भी पेगन ही थी। वह धर्म-भाषा तो ईसा के ३०० वर्ष पीछे बनी। इसी धार्मिक और कृत्रिम ग्रीक का विकसित रुप निओ-हेलेनिक कहलाता है। इस पर लोक-भागा की भी छाप स्पष्ट देख पड़ती है। यही भाषा मध्य युग में से होती हुई आज आधुनिक ग्रीक कहलाती है। १४५० ई० के पीछे की भाषा आधु- निक कही जाती है। मध्ययुग में बोलचाल की भाषा का इतना प्राधान्य हो गया था कि उस समय की ग्रीक सामयिक बोली का ही साहित्यिक रूप थी, पर अब फिर ग्रीक में प्राचीन एटिक शब्दों के भरने की प्रवृत्ति जाग उठी है तो भी आधुनिक ग्रीक और प्राचीन एटिक ग्रीक में बड़ा अंतर हो गया है। आज की ग्रीक में कई समानाक्षरों और संध्यक्षरों का लोप हो गया है। व्यंजनों के उच्चारण में भी कुछ परिवर्तन हो गया है। आधुनिक श्रीक में न तो अक्षरों की मात्रा का विचार रहता है और न स्वर-प्रयोग ही होता है। इस बल-प्रयोग के प्राधान्य से कभी-कभी कर्णकटुता भी आ जाती है। इनके अतिरिक्त बहुत सी विभक्तियाँ भी अव लुप्त अथवा विकृत हो गई हैं और विभक्त्यर्थ अव्ययों का प्रयोग अधिक हो गया है। क्रियाओं में प्राय: सहायक क्रियाओं ने शिभक्तियों का स्थान ले लिया है । शब्द-भांडार भी बढ़ गया है । अनेक नये शब्द गढ़ लिए गए है और बहुत से विदेशी शब्द अपना लिए गए हैं। यदि प्राचीन संस्कृत और वर्तमान हिंदी की तुलना की जाय तो ऐसी ही अनेक समान बातें ! मिलेंगी। एशिया माइनर के बोगाजकुई में जो खुदाई और खोज हुई है उससे .