पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 २५८ भापा-विज्ञान इन शब्दों का अक्षरार्थ नहीं प्रत्युत सामान्य अर्थ लिया जाता है अर्थात् उनका सञ्चा बल अब कम हो गया है जिन अर्थी और भावों को समाज गोपनीय समझता है उनको प्रकट करनेवाले अच्छे शब्द भी अपना गौरव खो बैठते हैं, जैसे संस्कृत अथवा हिंदी में सहवास, प्रसंग, समागम आदि सामान्य अर्थ में आते हैं पर अव जनता में इनका संबंध कामशास्त्र से हो चला है। हिंदी में दोस्ती और यारी का अर्थ किस प्रकार पहले अच्छा था और अब बुरा हो गया है, संवको मालूम है। कहीं कहीं की बोलियों में शब्दों के बुरे अर्थ हो जाया करते हैं। जैसे गुरु और राजा साहित्यिक भाषा में ठीक माने जाते हैं पर बनारसी बोली में उनमें गुंडेपन की गंध आती है। कुछ लोगों के पेशे ऐसे होते हैं जिनके कारण अच्छे शब्द ऊँचे से थोड़े नीचे आ जाते हैं जैसे महाजन, महाराज आदि । महाजन का सीधा अर्थ है बड़ा आदमी। यही अर्थ संस्कृत में था और हिंदी में भी हो सकता है पर रुपये देने लेनेवाले भी ऐसे ही महाजन होते हैं, अतः अब उसका रूढ़ अर्थ संकुचित और छोटा हो गया है। अब महाजन का मुख्य अर्थ होता है लेन-देन करनेवाला धनी व्यापारी । इसी प्रकार महाराज का प्रयोग बड़े राजाओं अथवा मान्य ब्राह्मणों के लिये होता था, पर जब ब्राह्मणों ने रसोई बनाने का पेशा अपनाया तब यह नाम भी उन्हीं के साथ रसोइया का पर्याय बन गया। एक बात ध्यान देने की है कि इस प्रकार पेशे के कारण सभी भापाओं और प्रांतों में शब्दों का पतन हुआ है। बंगाल का ठाकुर (= भगवान्), उड़ीसा का पुजारी, विहार का बाबाजी और युक्तप्रांत का महाराज सभी अब रसोइया के पर्याय हो गये हैं। एक दृन्नरा बड़ा चलता शब्द है भैया। युक्त में इनका प्रयोग भाई के अर्थ में होता है प: दक्षिण-पश्चिम के गुजराती नथा महाराष्ट्र लोगों में भैया का अर्थ होता है हट्टा-कट्टा युक्तमोतीय नौकर। इनका कारण बही पेशवाली बात है। साथ ही यह भी न्मरण रखना चाहिए कि एक प्रांन से दूसरे प्रांत में जाने पर भी नेक शब्दों का अर्थ बिगड़ जाता है।