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रूप-विचार २०१ प्रत्यय है । इस प्रकार हम प्रत्ययों के प्रधान दो भेदों से परिचित हैं। रूप-साधक प्रत्यय से शब्द का वह रूप बनता है जो वाक्य में प्रयुक्त प्रत्ययों के दो भेद होता है अर्थात् शब्द प्रयोगाई हो जाता है पर इसके पहले बाक्य के क्षेत्र में आने के पहले- प्रकृति स्वयं जिन प्रत्ययो का सहारा लेकर शब्द को जन्म देती है वे शब्द-साधक प्रत्यय कहलाते हैं। कभी कभी प्रकृति सर्वथा शुद्ध रहती है, उसमें केवल रूप-साधक अर्थात् विभक्ति प्रत्यय लगता है जैसे रामः अत्ति (राम खाता है) में राम + स् , अद् + ति इन दोनों शब्दों में केवल रूप-साधक प्रत्यय लगे हैं। और यदि हम रामत्वम् शब्द को लें तो उसमें 'म्' रूप-साधक प्रत्यय है; और 'राम' प्रकृति है। इन दोनों के बीच में एक और प्रत्यय है । यह प्रत्यय शब्द-साधक कहलाता है क्योंकि उससे प्रकृति अर्थात् शब्द के अर्थ में विकार आता है । इसी प्रकार अन्नम् में अद् प्रकृति, त् (न् ) शब्द-साधक प्रत्यय और म् रूप-साधक प्रत्यय है ! संक्षेप में हम कह सकते हैं कि रूप-साधक प्रत्यय वाक्यान्वय से और शब्द-साधक प्रत्यय शब्द-रचना से संवद्ध होते हैं। रूप दो प्रकार के होते हैं संज्ञारूप और क्रिया रूप । इसी से (१) प्रयोगार्ह शब्द को संस्कृत में पद कहते हैं। सविभक्तिक शब्द प्रयोगाई होता है । अतः विभक्तिवाले शब्द को ही पद कहते हैं ( सुतिङन्तं पदम् ११४११४) 1 इस प्रकार प्रयोगार्ह शब्द-सविभक्तिक शब्द = पद | यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि अव्यय भी पद होते हैं। चे असर्वविभक्तिक होते हैं अथवा निपात सर्वदा एक रूप में रहनेवाले होते हैं। पद से शब्द अधिक व्यापक है। सविभक्तिक तथा निर्विभत्तिक दोनों प्रकार के शब्दों को हम शन्द कहते हैं। (२) शब्द-साधक, प्रकृति-साधक और अर्थ-साधक पर्याय के समान प्रयुक्त होते हैं। (३) यहाँ संज्ञा में क्रिया के अतिरिक्त सभी ऐसे शब्द श्रा,जाते हैं जिनमें -विभक्ति लगती हैं।