पाँचवाँ प्रकरण रूप-विचार नियमानुसार रूप-विचार में केवल शब्दरूपों का अर्थात् शब्दों की विभक्तियों और विभक्ति के स्थानीय साधन' शब्दों तथा अन्य रूप-विचार और रूपमात्रों का विचार होना चाहिए, पर सामान्य व्यवहार में रूप-विचार व्याकरण का पर्याय समझा व्याकरण जाता है। व्याकरण के दो मुख्य भाग होते हैं- शब्द-साधन और वाक्य-विचार । शब्द-साधन में कारक, काल, अवस्था आदि के कारण शब्दों में होनेवाले रूपांतरों का वर्णन रहता है अर्थात् संज्ञा, सर्वनाम विशेषण और क्रिया के रूप कैसे बनते हैं इस पर विचार किया जाता है। पर वाक्य-विचार में उन्हीं सिद्ध रूपों की प्रयोगाई शब्दों की- विवेचना होती है। वाक्य-विचार दो प्रश्नों को हल करता है--(१) वाक्यों अथवा वाक्यांशों से किस प्रकार अर्थ का बोधन होता है और ( २) सविभक्तिक शब्दों का कहाँ किस प्रकार प्रयोग होना चाहिए । यदि दूसरे शब्दों में इसे कहें तो यों कह सकते हैं कि 'व्याकरण का मुख्य प्रयोजन है शब्दों के रूप और उन रूपों के प्रयोग का वर्णन तथा विवेचन करना । अत: व्याकरण के जिस भाग में रूपों का वर्णन रहता है वह शब्द-साधन और जिसमें (१) इन सब की व्याख्या इसी प्रकरण में श्रावेगी । (२) देखो-~-Parallel Grammar Series के व्याकरणों में दो ही भाग रहते हैं-~-Accidence (शब्द-साधन) और Syntax (वाक्य-विचार) (*) Cf. Greek Grammar by E. A. Sonne- nschein; P. 4. () Cf. Ibid P. 158. १८२
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