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१०६ भापा-विज्ञान लेखक भी 'हिंदी' शब्द का मनचाहा अर्थ किया करते हैं इससे भापा- विज्ञान के विद्यार्थी को हिंदी शब्द के (१) मूल शब्दार्थ, (२) प्रचलित और साहित्यिक अर्थ तथा (३) शास्त्रीय अर्थ को भली भाँति समझ लेना चाहिए । तीनों अर्थ ठीक हैं पर भाषा-विज्ञान में वैज्ञानिक खोज से सिद्ध और शास्त्र प्रयुक्त अर्थ ही लेना चाहिए। हिंदी (पश्चिमी हिंदी अथवा केंद्रीय हिंदी-आर्य भाषा) की प्रधान पाँच विभाषाएँ हैं-खड़ी बोली, ब्रजभापा, कन्नौजी, बांगरू और बुंदेली । आज खड़ी बोली राष्ट्र की भाषा है, खड़ी बोली साहित्य और व्यवहार सबमें उसी का वोलवाला है, इसी से वह अनेक नामों और रूपों में भी देख पड़ती है। प्रायः लोग प्रजभापा, अवधी अादि प्राचीन साहित्यिक भापात्रों से भेद दिखाने के लिये आधुनिक साहित्यिक हिंदी को 'खड़ी बोलो' कहते हैं। यह इसका सामान्य अर्थ है, पर इसका मूल अर्थ लें तो खड़ी बोली उस घोली को कहते हैं जो रामपुर रियासत, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, महारनपुर, देहरादून, अंबाला तथा फलसिया और पटियाला रियासत के पूर्वी भागों में बोली जाती है। श्लमें यद्यपि फारसी-अरवी के शब्दों का व्यवहार. अधिक होता है, पर वे शब्द तय अथवा अर्धतत्सम होने हैं। इसकी उत्पत्ति के विपय में 'अब यह माना जाने लगा है कि इसका विकास शौरसनी अपभ्रंश से हुया है 1 उन पर कुछ पंजाबी का भी प्रभाव देख पड़ता है । वर खड़ी बोली ही अाजकल की हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी तीनों का मूलाधार है। जैसा हम कह चुके हैं, खड़ी बोली अपने शुद्ध रूप में केवल एक बोली है, पर जब यह माहित्यिक रूप धारण करती है तब कभी यह हिंदी कही जाना है, और कभी उन जिम भाषा में संस्कृत के नत्मम और प्रतिमा गनों का विशेष व्यवहार होता है यह हिंदी (अथवा मृगपाल विद्वानों की जगदिदी) की जाती है । इसी हिंदी में वर्तमान सगरा माल्यि निर्मिती गा। पड़े निग्ये दिल एमी का व्यवहार