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१०२ भाषा-विज्ञान गिलगिट की घाटी में बोली जाती है। यही मूल दरदस्थान माना जाता है अतः शीना दरद की अाधुनिक प्रतिनिधि है। काश्मीरी ही ऐसी दरद भापा है जिसमें अच्छा साहित्य है। भारतवर्ष की आधुनिक आर्य भाषाएँ उसी भारोपीय परिवार की हैं जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं। अपने 'भापा सर्वे में प्रियर्सन ने भिन्न भिन्न भाषाओं के उच्चारण तथा व्याकरण का विचार करके इन भारतीय आर्य भाषाओं को तीन उपशाखाओं में विभक्त किया है-(१) वर्गीकरण अंतरंग, (२) बहिरंग और (३) मध्यवर्ती । वह वर्गीकरण वृक्ष द्वारा इस प्रकार दिखाया जाता है.- (क) बहिरंग उपशाखा (१) पश्चिमोत्तरी वर्ग । १–लहँदा, २-सिंधी। (२) दक्षिणी वर्ग-३–मराठी। (३) पूर्वी वर्ग-४-आसामी, ५-वंगाली, ६.-उड़िया, -विहारी। (ख) मध्यवर्ती उपशाखा (१) मध्यवर्ती वर्ग-८-पूर्वी हिंदी । (ग) अंतरंग उपशाखा (५) केंद्र वर्ग-९-पश्चिमी हिंदी, १०-पंजाबी, ११-गुज- राती, १२-भीली, १३-खानदेशी, १४-राजस्थानी । (६) पहाड़ी वर्ग-१५-पूर्वी पहाड़ी अथवा नेपाली, १६- केंद्रवर्ती पहादी, १४-पश्चिमी पहाड़ी। इस प्रकार १७ भापाओं के ६ वर्ग और ३ उपशाखा मानी जा नानी है, पर कुछ लोगों को यह अंतरंग और यहिरंग का भेद ठीक नही प्रतीत होता। टा० सुनीतिकुमार, चैटर्जी ने लिखा है कि सुदूर पश्चिम और पूर्व की भापा एक साथ नहीं रखी जा सकनीं । उन्होंने इनके निग अरद प्रमाण भी दिए हैं और भाषाओं का वर्गीकरण नीचे गिटंग से किया है।