पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/११५

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भाषा-विज्ञान ( बहु० ) हो आदि । भारतीय आर्य प्रायः कोल शब्द से इन सभी अनार्य जातियों का बोध कराते थे। उत्तर भारत के ग्रामीण इन जातियों को अभी तक कोल कहते हैं । इसी से कोल अथवा कुलेरियन शब्द कुछ विद्वानों को अधिक अच्छा लगता है। पर संस्कृत में कोल शब्द 'सूअर के लिये और नीच जाति के अर्थ में आता है। कुछ लोग कुली शक का संबंध उसी कोल से जोड़ते हैं। भारत की भारोपीय आर्य भाषाओं पर द्राविड़ और मुंडा दोनों परिवारों का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। ध्वनि-संबंधी प्रभाव कुछ विवादा- स्पद है पर रूप-विकार तो निश्चित माना जाता भारोपीय भाषाओं है। बिहारी क्रिया की जटिल काल-रचना अवश्य पर मुंडा का प्रभाव ही मुंडा की देन है। उत्तम पुरुष के सर्वनाम के दो रूप ( एक श्रोता का अंतर्भाव करनेवाला और दूसरा केवल वक्ता का वाचक ) मुंडा का ही विशेष लक्षण है और वह गुजराती, हिंदी आदि में भी पाया जाता है। कम से कम मध्यप्रांत (सी० पी०) की हिंदी में तो यह भेद स्पष्ट ही है-अपन गए थे' और 'हम गए थे' दानों में भेद स्पष्ट है । 'अपन' में हम और तुम दोनों आ जाते हैं । गुजराती में भी 'अमे गया हत्ता' और 'आपणे गया हता' में यही भेद होता है। अनेक संख्यावाचक शब्द भी मुंडा से आए प्रतीत होते है; जैसे कोरी अथवा कोड़ी मुंडा शब्द कुड़ी से आया है। कुछ विद्वान् समझते हैं कि कोरी अंगरेजी स्कोर ( Score) शब्द का तद्भव पर विचार करने पर उसका मूल मुंडा का रूप ही मालूम पड़ता है। इस प्रकार अन्य अनेक लक्षण हैं जो मुंडा और आर्य भापायों में समान पाग जाते हैं। भारतवर्ष की एकाक्षर अथवा चीनी परिवार की भाषाओं में तिब्बती और चीनी प्रधान भाषाएँ हैं। इसी एकातर अथवा से इस परिवार का एक नाम तिब्बती चीनी नीनी परिवार परिवार भी है। इन भाषाओं में से चीनी भारत में की नहीं बोली जाती । स्वामी अर्थान ताई शाखा की अनेक बोलियाँ