पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/११३

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८८ भाषा-विज्ञान के सजातीय हैं। ख्मेर भाषा में भी अच्छा साहित्य मिलता है। आजकल यह भाषा ब्रह्मा और स्याम के सीमा-प्रांतों में बोली जाती है। 'पलौंग' और 'या' उत्तरी वर्मा की जंगली बोलियाँ हैं। निकोबरी निकोबर द्वीप की बोली है । वह मोन और मुंडा बोलियों के बीच की कड़ी मानी जाती है। खासी बोली भी उसी शाखा की हैवह आसाम की खासी- जाति द्वारा पहाड़ों में बोली जाती है। खासी बोली का क्षेत्र तिब्बत-बर्मी भाषाओं से घिरा हुआ है और बहुत दिनों से इन बोलियों का मोन-ख्मेर आदि आष्ट्रिक (आग्नेय ) भाषाओं से कोई साक्षात् संबंध नहीं रहा है। इस प्रकार स्वतंत्र विकास के कारण खासी बोलियों में कुछ भिन्नता श्रा गई है। पर परीक्षा करने पर स्पष्ट हो जाता है कि उसका शब्द- भांडार मोन से मिलता-जुलता है और रचना तो बिलकुल मोन की ही है। भारत की दृष्टि से आग्नेय परिवार की सबसे प्रधान भाषा मुंडा है । पश्चिमी बंगाल से लेकर विहार और मध्यप्रांत, मध्यभारत, उड़ीसा और मद्रास प्रांत के गंजम जिले तक मुंडा वर्ग की मुंडा बोलियाँ फैली हुई हैं। इनके बीच-बीच में कभी-कभी द्राविड़ बोलियाँ भी पाई जाती हैं। मध्यप्रांत के पश्चिमी भाग में तो मुंडा बोलियाँ द्राविड़ बोलियों से घिरी हुई हैं पर इससे भी अधिक ध्यान देने योग्य मुंडा की कनावरी बोली है। यह हिमालय की तराई से लेकर शिमला पहाड़ियों तक बोली जाती है। यह मुंडा बोलियो का मुख्य केंद्र विध्यमेखला और उसके पड़ोस में है। उनमें सबसे प्रधान बोली विध्य के पूर्वी छोर संस्थाल परगने और छोटा नागपुर ( बिहार ) की खेरवारी बोली है। संताली, मुंडारी, हो, भूमिज, कोखा आदि इसी वोली के उपभेद हैं। खेरवारी के अतिरिक्त कूकू, खडिया, जुआंग, शावर, गदवा आदि भी मुंडा शाखा की ही बोलियाँ हैं। कूडू, विध्य पश्चिमी छोर पर मालवा ( राजस्थान ), मध्यप्रांत के पश्चिमी भाग ( अर्थान, बेतूल आदि में) और मेवाड़ में बोली जाती है। अन्य सब मुंढा बोलियाँ विशेष महत्त्व को नहीं हैं।