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८० भाषा-विज्ञान ( काफिरिस्तान की बोली) बशगली, खोवार ( या चित्राली), शीना और पश्चिमी काश्मीरी मुख्य बोलियाँ हैं। इन्हें कुछ लोग काफिर भाषा भी कहते हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक ईरानी भाषाओं का भारत बड़ा संबंध रहा है । मुसलमान काल में तो उन्हीं में से एक भारत की राजभाषा हो गई थी। भारत की आधुनिक आर्य भाषाओं में फारसी संसर्ग के अनेक चिह्न भी मिलते हैं । ईरानी देश के दो भाग किये जाते हैं--पूर्वी और पश्चिमी । पूर्वी भाग की सबसे प्राचीन भाषा अवेस्ता कहलाती है। संस्कृत अभ्यस् (अभि+ अस् धातु से मिलती-जुलती धातु से यह शब्द बना है और 'वेद' के समान उसका शास्त्र अथवा ग्रंथ' अर्थ होता था , पर अब यह पारसी शास्त्रों की भाषा के लिये प्रयुक्त होता है । जेंद (था जिंद ) उसी मूल अवेस्ता की टीका का नाम था जो टीकाएँ पहलवी में लिखी गई हैं। इससे अवेस्ता को जेंद भापा भी कहते हैं । जो अवेस्ता का साहित्य उपलब्ध है उसमें कई कालों की भाषाएँ हैं। उनमें से सबसे प्राचीन गाथा' कहलाती है । उसी में जरथुस्त्र के वचनों का संग्रह है। गाथा की भापा भारोपीय भाषाओं में वैदिक को छोड़कर सबसे प्राचीन है। परवर्ती अवेस्ता (या यंगर अवेस्ता) इतनी अधिक प्राचीन नहीं है; उसमें लिखे व्हेंदीदाद के कुछ भाग ईसा के समकालीन माने जाते हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि वर्तमान अफगानी उसी प्राचीन अवेत्ता के वंशज हैं। पूर्वी ईरानी की एक और प्राचीन भापा सोग्दी अथवा सोदियन है। यह परवर्ती अवेस्ता से भी अर्वाचीन मानी जाती है । इसकी अभी इसी शताब्दी में खोज हुई है। विद्वानों की कल्पना है कि आधुनिक पामीरी-भाषाएँ इसी सोन्दी से निकली हैं । वल्लूची भाषा की उत्पत्ति का अनुमान अभी नहीं किया जा सका है पर ग्रे ने लिखा है कि आधुनिक ईरानी भाषाओं में यह सबसे अधिक असंस्कृत और अविकसित है।