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१८४ नायिका प्रिय के चुंबन से हुए दंतक्षत को छिपाने के लिए यह बहाना कर रही है। -जब कोई गुप्त बात किसी और के बहाने दूसरे के प्रति कही जाय । जैसे, हे सखी ! मैं कल महादेवजी के पूजन को जाऊँगी । यहाँ नायिका सखी से कहने के बहाने पास खड़े हुए प्रेमी को सुना रही है कि कल महादेवजी के मंदिर में भेंट होगी। १८५ -- जब प्रकट रूप से कुछ कह कर श्लेष द्वारा गोपन किया जाय । जैसे, सैन से दिखाकर कहती है कि महादेवजी की पूजा करो। यहाँ नायिका प्रकट रूप में अपनी इच्छा कहकर भी उसे श्लेप से गोपन कर रही है। १८६--जब किसी मर्म का दूसरे कृत्य से छिपाया जाय । जैसे, पति के विदा होते ही आँसू निकल पाए पर उन्हें पोंछते समय उसने जं भाई लिया। अर्थात् उसने ज भाई लेने को आँसू निकलने का कारण प्रकट करना चाहा। -लोक प्रवाद में प्रचलित उक्ति का जब प्रयोग किया जाय । जैसे, विरह के दुःख को आँख मूंदकर छ महीने तक सहूँगी। आँख मद कर अर्थात् धैर्य के साथ । १८८- जब प्रचलित उक्ति का सार्थक प्रयोग किया जाय । जैसे, जो गायों को फेर लावे उसी को अर्जुन समझो । विराट की गायों को अर्जुन कौरवों से छीन कर फेर लाए थे, जो उन्हें अपहरण कर लिए जाते थे। यह अब एक साधारण उक्ति हो गई है जिसका तात्पर्य है कि वीर ही बड़े कार्य को कर सकता है। यहाँ नायिका अपनी सखी से कहती है कि उसके रूठे हुए या विदेश जाते हुए पति को लौटा लाना कठिन कार्य है . - . 1