- है 1 मुग्धा स्त्री १७६ -- जब किसी गूढ अभिप्राय से कोई बात कही जाय । जैसे, हे पथिक, वहाँ उस वेतस वृक्षों { के झंड ) में उतरने योग्य सोता है । इसमें गुप्त रूप से संकेतस्थान बतलाना भी -जब उसी वाक्य से प्रश्न और उत्तर दोनों निकले । जैसे, कोन ( कौन ) गृह में मुग्धा स्त्री काम-केलि की रुचि करती है ? इस प्रश्न का उत्तर उसो वाक्य से निकलता है कि । गृह कोन में काम-केलि की रुवि करती है। ' केवल ' कोन ' शब्द का उपयुक्त रूप रखने से दोनों अर्थ निकल पाते हैं। इस अलंकार का एक भेद और है कि जब कई प्रश्नों का एक ही शब्द से उत्तर निकले। १८१ ---जब दूसरे का अभिप्राय समझ कर ऐसी चेष्टा की जाय कि जिससे उस पर यह प्रकट हो जाय कि उसका अभिप्राय समझ लिया गया । जैसे मैंने उसकी भोर ( साभिप्राय दृष्टि से ) देखा तब उसने अपनी शीशमणि को बालों में छिपा लिया । प्रेमी के मिलने का समय केवल दृष्टि ही से पूछने पर नायिका ने उसके अभिप्राय को समझकर शार ही से शीशमणि को बालों में छिपाकर यह बतलाया कि रात्रि में मिलगी। -जब दूसरे के मन की छिपी बात जानकर क्रिया द्वारा अपना भाव प्रकट किया जाय । जैसे, सबेरे पति के शैया पर आते ही स्त्री हँस- कर उसका पाँव दाबने लगी। अर्थात् स्त्री यह भाव प्रकट करती है कि तुम रात्रि भर कहीं दूसरे जगह रहे हो और इससे थक गए हो । उसी थकावट को दूर करने के लिए मैं तुम्हारा पाँव दाबती हूँ। १८३ --जब बहाने से किसी प्रत्यक्ष सत्य कारण को छिपाकर कुछ और कहा जाय । जैसे, हे सखी, सुगे ने दाँतों को अनार समझकर ( अधर पर यह ) क्षत कर दिया है। भा० भू०-५ १८२ , ,
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