(0) 6 १५० --अन्य कारण के मिल जाने से जब कार्य सुगम हो जाय । जैसे, स्त्री को इच्छा हुई ( पति से मिले उसी समय ) सूर्यास्त हुश्रा । सूर्य के अस्त होने से उसकी इच्छा पूर्ति में सुगमता हो गई। ११-जब प्रबल शत्रु के ( उससे पार न पाने पर ) मित्रों का अहित करे । जैसे, नेत्रों के समीपस्थ कानों पर कमलों ने धावा किया । कमलों ने नेत्रों से सौंदर्य में परास्त होकर उसके समीपस्थ कानों को नत्रों का मित्र मानकर उनका अहित किया अर्थात् कर्णफूल बनकर, जो कमल के श्राकार का होता है, कानों को नीचे खींचने लगे मित्र पक्ष का हित करना भी इस अलंकार के अंतर्गत माना जाता है। जब 'इम प्रकार हुआ, तब ऐसा क्यों न होगा' कहकर वर्णन किया जाय । जैसे, जब मुख ने चंद्रमा पर ( सौंदर्य में ) विजय पा लिया तब कमल की क्या बात है ( अर्थात् निस्सदेह वह परास्त होगा )। कैमुत्तिक न्याय से जब कोई बड़ी बात हो गई तब छोटी के होने में संदेह न रहना ही इस अलंकार की विशेषता है। १५३ - जब किसी कही हुई बात का युक्ति के साथ समर्थन किया जाय । जैसे, हे मदन, जिस शिव ने तुम्हें परास्त किया था उसको मैंने हृदय में धारण किया है, ( इसलिए मुझे अब मत सतायो नहीं तो तुम्हारा नाश निश्चय है)। कोई नायिका काम-वाण से दुखित हो स्वरक्षार्थ प्रयत्न कर रही है। इसमें कामदेव को युक्ति से बतलाया गया है कि यदि तुम हमारे हृदय तक पाने का साहस करोगे तो पुनः भस्म हो जानोगे। इप अलंकार में एक पद या एक वाक्य के अर्थ से कारण दिखलाए जाने के कारण दो भेद-पदाथ-हेतु और वाक्यार्थ-हेतु-माने गए हैं । -जब विशेष बात से सामान्य का समर्थन किया जाय । जैसे, रामजी की कृपा से पर्वत भी जल में उतराते थे, महान पुरुष क्या नहीं कर सकते ।
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