(५६ ) नेह समान पहिले के स्थान को व्यंग्य से वजित करके कहा जाय । जैसे, ( तैल, प्रेम ) का हृदय में नाश नहीं हुआ वरन् दीपक में जाकर हुआ। तात्पर्य है कि प्रश्न के साथ या बिना प्रश्न के किसी वस्तु गुण श्रादि को उनके उपयुक्त स्थानों से निषेधपूर्वक हटाकर किसी अन्य विशेष स्थान पर स्थापित किया जाय । उदाहरण में दिखलाया है कि प्रेम का हृदय में कम होना संभव नहीं है और यदि कम होगा तो दीपक में होगा । प्रश्न युक्त उदाहरण यो लीजिए-संसार में दृढ़ श्राभूषण क्या है ? यश है, रन नहीं। १४६ -जब दो बातों में यह निश्चय न हो कि ऐसा होगा या वैसा' । जैसे, ( नायिका कहती है कि ) मेरे विरह-दुःख का अंत या तो यम करेंगे या मेरे प्यारे पति। अर्थात् मृत्यु या पति-प्रागमन इन दो में से किसी एक से दुखों का अंत हो जायगा। इन दो समान शक्ति विकल्पों में एक का होना निश्चित रहता है पर संदेहालंकार में अनिश्चित रहता है। १४७-४८-समुच्चय दो प्रकार का होता है- (1) जब अनेक भाव एक साथ ही उत्पन्न हो । जैसे, तुम्हारे शत्रु भागते हैं, गिरते हैं और फिर डर के मारे भागते हैं। भागना, थक कर गिरना और फिर हर से भागना साथ ही हुश्रा । ( २ ) अनेक कारण मिलकर एक कार्य करें, जिसके लिए एक ही काफी हो । जैसे, यौवन, विद्या, धन और कामदेव मद उत्पन्न करते हैं। इनमें एक ही मद उत्पन्न करने को बहुत है तिस पर भी अनेक कारण कहे गए हैं। १४६-जब कई क्रियाओं या भावों का क्रमशः एक ही में (कर्ता ) वर्णन किया जाय । जैसे, देखकर जाती है, पाती है, हँसतो है और ज्ञान की बातें पूछती है। नायिका को अनेक कार्य करते या भाव प्रगट करते कहा गया .
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