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(५७) १३८ -जब कई वस्तुओं का क्रमशः ग्रहण और त्याग के रूप में उल्लेख हा और पूर्वकथित के प्रति उत्तरोत्तरकथित का विशेषण भाव से स्थापना किया जाय । जैसे, आँखें कान तक, कान बाहु तक और बाहु जंघे तक पहुँचते हैं। पूर्व-कथित आँखों, कानों तथा बाहुओं के प्रति उत्तरोत्तरकथित कान तक, बाहु तक और जंघे तक विशेषण रूप में लाए गए हैं । एकावलो का दूसरा भेद वह है जिसमें पूर्वकथित के प्रति उत्तरोत्तर. कथित का विशेषण भाव से निषेध किया जाय । जैसे, जहाँ वृद्धगण न हो वह सभा शोभा नहीं देती और वे बृद्ध जो कुछ पढ़े लिखे नहीं हैं वे भी शोभा नहीं देते। १३६ दीपक और एकावली नामक अलंकारों के मिलने पर माला- दीपक अलंकार होता है । जैसे, स्त्री का हृदय कामदेव का घर हुआ और तुम स्त्री के हृदय के घर हो । यहाँ भिन्न भिन्न कारणों से नायिका का हृदय तथा नायक दोनों ही कामदेव के वासस्थान हुए, इससे दीपक हुश्रा और पूर्वकथित के प्रति उत्तर-कथित की विशेषण भावसे स्थापना की गई, इससे एकावली no १४०-जब कई वस्तुओं का क्रमशः गुणों को उत्तरोत्तर बढ़ाते हुए वर्णन किया जाय । जैसे, अमृत शहद से अधिकतर मधुर है और कविता उससे भी अधिक मधुर १४१-जब वस्तुओं का उल्लेख कर पुनः उसी क्रम से उनके गुण, क्रिया प्रादि का वर्णन किया जाय । जैसे, शत्रु, मित्र तथा विपत्ति को दमन, प्रसन्न और नष्ट करो। क्रम ठीक न रहने से क्रम-भंग दोष होता है। इसे क्रमालंकार भी कहते हैं।