( ५४ ) ( ३ ) कार्य कोई प्रारंभ किया जाय पर दूसरा कार्य कर डाला जाय । जैसे, हे प्रभु, मोह तो श्रापने मिटाया नहीं, और भी मोह लगा दिया। भगवल्लोला का श्रवण मोह मिटाने के लिए किया गया पर उसके विपरीत मोह ( भगवान की लीला में ) अधिक बढ़ गया। यह भी अर्थ हो सकता है कि विदेश से लौट नायक से नायिका कहती है कि आप मोह मिटाने विदेश गए पर मिटाने के बदले और बढ़ा दिया । १२१-२३-विषम अलंकार तीन प्रकार का होता है- (१) दो बेमेल वस्तुओं का साथ होना। जैसे, स्त्री का शरीर तो अत्यन्त कोमल है और कहाँ यह विरहाग्नि ? अर्थात् वह कैसे इस अग्नि को सहन कर सकेगी? ( २ ) कार्य और कारण के रंग ( वाह्य रूप ) भिन्न भिन्न हो । जैसे, तेरे काली तलवार रूपी लता से श्वेत कीर्ति उत्पन्न हुई । पाँचवीं विभावना से इसमें यही विभिन्नता है कि उसमें कार्य और कारण ही भिन्न होते हैं। इसमें कार्य और कारण में भिन्नता न होते हुए केवल बाहरी रूप ही विभिन्न है। ( ३ ) अच्छे कार्य का बुरा फल हो । जैसे, सखी ने कपूर लगाया पर शरीर को उससे ताप ही अधिक हुश्रा १२४-२६--सम अलंकार (विषम का उल्टा। तीन प्रकार का होता है- (१) एक दूसरे के योग्य वस्तुओं का साथ होना । जैसे, अपने योग्य समझ कर हार ने स्त्री के वक्षस्थल पर वास किया । दोनों ही में सौंदर्य की समानता है। ( २ ) कार्य और कारण में सब प्रकार की समानता हो । जैसे, यदि लचमी नीचगामिनी हो तो आश्चर्य नहीं क्योंकि उसकी उत्पत्ति हो बल से है।
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