(५२ ) . . ११०.११५-किसी कार्य का कारण के बिना होना या उसके संबंध में कुछ विशेष कल्पना का होना विभावना है। यह छ प्रकार की होती है- ( १ ) बिना कारण के कार्य का होना। जैसे, बिना महावर लगाए चरण श्राज लाल दिखला रहे हैं। ( २ ) अपूर्ण कारण से पूर्ण कार्य का होना । जैसे, देखो कामदेव ने केवल कुसुम बान को हाथ में लेकर ही संसार को जीत लिया। केवल धनुर्बाण का हाथ में ले लेना ही युद्ध में जयप्राप्ति का अपूर्ण कारण है। ( ३ ) रुकावट के होते हुए भी कार्य का पूरा होना । जैसे, रात दिन आँखें कान के पास रहती हैं तिस पर भी वे मोह में पढ़ी हुई हैं। श्रुति-कान, वेद । श्लेष से अति का वेद अर्थ लेने से मोह के मार्ग में रुकावट पड़ने पर भी कार्य पूरा हो गया। ( ४ ) ऐसे कारण से किसी कार्य का होना जो उसका कारण नहीं हो सकता । जैसे, अभी कबूतर को कोयल को बोलो बोलते हुए सुना । तात्पर्य है कबूतर सी गर्दनवाली नायिका कोयल सी मीठी बोली बोलती है। ऐसा कहकर सखी नायक को नायिका की सुधि दिलाती है । (५ ) जिस कारण से जैसा कार्य होना चाहिये वैसा न होकर उसका उल्टा होना । जैसे, हे सखी चंद्रमा मुझे ताप ही देता है। ( ६ ) कार्य से कारणोत्पत्ति का श्राभास मिले अर्थात् जो वास्तविक कारण न हो । जैसे, नेत्र-रूपी मछली से इस प्राश्चर्यजनक नदी को प्रवाहित होते देखते हैं। नेत्र से अश्रु का निकलना ठीक होते हुए भी मछली से नदी का प्रवाहित होना अशुद्ध है प्रत्युत् नदी से मछली की उत्पत्ति है। ११६-कारण होते हुए भी कार्य का न होना । जैसे, शरीर के भीतर काम के दीप के जलते हुए भी नेह ( प्रेम और तैल ) कम नहीं हुआ। दीपक जलने से तैल को कम होना चाहिए पर नहीं होता।
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