(४७ ) (१) जब उपमेय किसी वस्तु के न रहने से क्षीण हो । जैसे, तेरे नेत्र खंजन ता कमल से हैं पर बिना अंजन लगाए शोभा नहीं पाते। ( २ ) जब उपमेय किसी वस्तु के न रहने से क्षीण होते हुए भी शेभित हो । जैसे, ऐ स्त्रो तेरे शरीर में सभी गुण हैं पर रुखाई तनिक भी नहीं है जिसे तू अपने पति को मान करके वश कर सके ) रुखाई का न होना शोभा बढ़ाता है। -जब उपमेय में उपमान का वर्णन ( कार्य, लिंग तथा गुण ) की समानता के कारण समारोप किया जाय । जैसे, संध्या के समय चंद्रमा को देख कुमुदिनी प्रफुल्लित हुई । यहाँ कुमुदिनी के बहाने नायिका का वर्णन किया गया है कि वह संध्या के समय पति ( चंद्र ) के अाने से प्रसन्न हुई। १६--विशेष अभिप्राय लिये हुए जब विशेषण अाता है । जैसे, यह चंद्रमुखी नायिका देखकर ही ताप हरण करती है। चंद्र ताप हरण करता है तथा इसी से हिमकर, सुधाकर आदि कह- लाता है। जन विशेष्य अभिप्राय लिए हुए होता है । जैसे, यह वामा पति के सीधे प्रकार कहने को भी नहीं मानती । बामा ( जो बाम हो, टेडी हो ) शब्द साभिप्राय है। एक शब्द के अनेक अर्थ लेकर कुछ कहना । जैसे, मुख पूर्ण नेह प्रेम, तेल ) के बिना इस प्रकार नहीं चमकता । ६६-१००-भापाभूपण में इसकी परिभाषा एक प्रकार से नहीं दी गई है। बा० गिरिधरदास कृत भारतीभूपण में यह इस प्रकार लिखी गई है ।- प्रस्तुत महाकवि भूपण ने शिवराज भूषण में यह लक्षण दिया है- प्रस्तुति लीन्हें होत जहँ अप्रस्तुति परसंस । प्रस्तुत बर्नन विप बन्यो जाइ।
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