( ३६ ) - (१) कमलमुखी { स्त्री) बिजली सो है-धर्म-लुप्रोपमा (२) देखो, स्त्री गेंदे की लता है-धर्म वाचक- मोपमा । ( ३ ) देखो, नायिका (प्रेम के समान सुन्दर है क्योंकि वह ) शृंगार रस की मूर्ति का कारण है धर्म-वाचक-उपमान-लुप्तोपमा । इस प्रकार लुप्तोपमा के बहुत से भेद हो सकते हैं। एक एक अंग के लुप्त होने से चार भेद हुए-धर्म लुप्ता, वाचक-तुप्ता, उमान लुप्ता और 3 पमेष-लुप्ता । दो दो अंग के लुप्त होने से छः भेद हुए -वाचक धर्मलुप्ता, घाचरू-उपमान लुप्ता, वाचकापमेय लुप्ता, धर्मा- पमान लुभा, धमपि मेग-लुप्ता, उपमानापमेयलुप्ता। इसी प्रकार तीन तीन अंगों के न रहने से भी अनेक लुप्तोपमा होते हैं । -जिसमें उपमेय ही उपमान भी होता है अर्थात् एक उपमान और उपमेय रूप में कही जाय । जिसमें उपमेय उपमान के समान और उपमान उपमेय के जाय अर्थात् दोनों में पारस्परिक सादृश्य होना . हो वस्तु ४८ समान बतलाया माना जाय। ४६-५३.--प्रतीप-प्रतिकूल, उलटा । अर्थात् उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलटे उपमान को उपमेय के सदृश बतलाना । उपमेय तथा उपमान के सादृश्य में श्राधिक्य तथा कमी श्रादि के संबंध से प्रतीप पाँच प्रकार के माने गए हैं । ( क ) जब उपमान उपमेय के समान है-जैसे कमल नेत्र सा और चन्द्र मुख सा है। ( ख ) जब उपमान का सादृश्य न कर सकने पर उपमेय तिरस्कृत हो-जैसे मुख ( के सौन्दर्य ) का क्या गर्व करती है ? जना चंद्र को तो देख । (ग ) जब उपमेय की समानता न कर सकने पर उपमान तिरस्कृत हा -- जैसे काम के बाण आँखों के तीक्ष्ण कटाक्ष के सामने मंद हैं।.
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