( ३४ ) दूसरी स्त्री के पास पति के जाने का निश्चय कर संतापित हुई नायिका अन्यसंमोगदुःखिता कहलाता है। २२ -- नायिकानों की धैर्य शक्ति के अनुसार ये तीन भेद किए गए हैं। साहित्य दर्पण का ५०४ के अनुसार ये भेद केवल मध्या तथा प्रौढ़ा में माने गए हैं। प्रिय में पर स्त्री-समागम के चिन्ह को देखकर भी धैर्य से क्रोध को प्रकाश रूप में प्रकट न करनेवाली स्त्री को धीरा, प्रत्यक्ष क्रोध प्रदर्शित करने वाली को धीरा और कुछ गुप्त तथा कुछ प्रत्या कोप करने वाली को धीगधीग कहते हैं। २३ -मान तीन प्रकार के हैं- लघु, मध्यम और गुरु । पहले की हँसी खेल में. दूसरे की विनीत बातचीत से और तीसरे की प्रिय के पाँव पड़ने ही पर शांति होती है। २४ --अनुभाव ---वे क्रियाएँ या चेष्टाएँ तथा गुण जिनसे रस का बोध हो अथवा जिनसे दूसरों को किसी के चित्त के भाव का अनुभव हो सके । अनुमाव चार प्रकार के हैं-सात्विक, कायिक, मानसिक और आह य । साहित्यदर्पण का० १३३-~~-१३६ में इसका वर्णन है । सत्वगुण से उत्पन्न विकार सात्विक है। स्तंभ : भय, हर्प आदि से निश्चेष्ट हो जाना। कंप --शीत. श्रम श्रादि से शरीर में अकस्मात् कॅपपी मालूम होना । इस बेपथु भी कहते हैं। स्वरभः। - अानंद श्रादि से इतना गद्गद हो जाना कि स्पष्ट भाषण करने की शक्ति का लोप हो जाय । विवरन = ( वैवण्य ) विषाद, क्रोध आदि से शरीर का रंग बदल का जाना। जय --- सुख दुख में शारीरिक व्यापार का ज्ञान न रह जाना, तन्मय हो जाने से पूर्वस्मृति का लोप होना । रामांच अानंद या पाश्चर्य से शरीर के रोमों का प्रफुश्लित होना ।
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