टिप्पणी १ -प्राचीन प्रथानुसार प्रारंभ में गणेशजी की स्तुति की गई है। इसके अनंतर इष्ट देव परब्रह्म परमेश्वर श्रीकृष्णजी की स्तुति चार दोहों u ४-अर्थात् छोटे हृदय में विश्वव्यापी परमेश्वर किस प्रकार समा सकेंगे। ५-गगी-सांसारिक मोह रागादि विकारों से लिप्त, लाल रंग । स्था -- श्रीकृष्ण जी, काला रंग । लाल रंग ( माया में लिप्त हृदय ) काले रंग । श्रीकृष्ण ) से मिलकर ( स्वभावानुसार ) गहिरा ताल न हुश्रा प्रत्युत् श्राश्चर्य है कि उसके प्रतिकूल ) सफेद ( स्वच्छ ) हो गया और उसी समय ( मिलते ही ) मैल ( कालापन, सांसारिक विकार ) अपन छोड़ दिया। दूसरे प्रकार का विषम अलंकार है। -साहित्यदर्पण का० ६७ में नायक के प्रथम चार भेद इस प्रकार दिए हैं-धारोदात्त, धागद्धत, धीर-ललित और धीरप्रशांत । का० ७२ में इन प्रत्येक भेदों के चार चार उपभेद किए गए हैं-दक्षिण, सृष्ट, अनुकून और शठ । इस प्रकार सोलह भेद हुए और इनमें प्रत्येक के का० ७७ के अनुसार उत्तम, मध्यम तथा अधम भेदों से अड़तालीस भेद हुए । भाषाभूपण में केवल बीच के भेद दिए गए हैं । नायक वह पुरुष है जिसका चरित्र किसी साहित्यिक ग्रंथ ( नाटक, काव्य आदि ) का प्रधान विषय हो अथवा जो साहित्य में शृंगार का बालंबन या साधक होते हुए रूपयौवन संपन्न हो
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