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( २६ ) ग्रंथप्रयोजन अलंकार सब्दार्थ के कहे एक सौ पाठ । किए प्रगट भाषा बिमैं देखि संस्कृत पाठ ॥ २०६॥ सुद्धालंकृति बहुत हैं अच्छर के संजोग । अनुप्रास पट बिध कहे जे हैं भाषा जोग ॥२१॥ ताही नर के हेतु यह कीना ग्रंथ नवीन । जो पंडित भाषानिपुन कविता बिर्ष प्रवीन ॥ २११ ॥ लन्छन तिय अरु पुरुष के हाव भोष रसघाम । प्रलंकार संजोग ते भाषाभूषन नाम ॥ २१२ ॥ भाषाभूपन ग्रंथ को जो देखे चितु लाइ । विविध प्रर्थ साहित्य रस ताहि सकल दरसाइ ॥ २१३ ॥ इति श्रीमरुस्थलाधीश श्रीमन्महाराज जसवन्तसिंहराठौरकृतं भाषाभूपणं समाप्तम् ॥