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( १४ ) चतुर पहैं जिहि तु गरे बिनु गुन डारी माल । तुम दोऊ बैठौ इहां जाति अन्हाधन ताल ॥ १०३ ॥ [व्यावस्तुति ] व्याजस्तुति निन्दा मिसहि* जबैं बड़ाई होहि । स्वर्ग चढ़ाए पतित लै गंग कहा कहुँ। तोहि ॥ १०४॥ [ब्याजनिंदा] व्याजनिंद निंदा मिसहि निंदा पौरै होइ । सदा छोन कीन्ह्यौ न क्यों चंद, मंद है सोइ ॥ १० ॥ [भाक्षेप] तीनि भौति प्राक्षेप है एक निसेधाभासु । पहिलहि कहियें प्रापु कछु बहुरि फेरि तासु ॥ १०६ ॥ दुरै निषेध जु विधि बचन लच्छन तीनौं लेखि । हौं नहिं दूती, प्रगिनि ते तियतन ताप बिसेखि ॥ १०७ ॥

  • पाठा० विषे। (प्रति० ख)

+ पा० का कहौं (प्र. क ) । प्रति० स्त्र में व्याजनिंदा का एक अन्य दोहे में लक्षण और उदाहरण दिया गया है. व्याजनिंद प्रस्तुति विप निंदा मोरे हाइ । साधु साधु, सखि ! मो लिए सहे दंत नष दोइ ।