( १६ ) भाषा १- अपरोक्ष सिद्धान्त-वेदान्त विषयक (प्रात्म तत्व ) ग्रंथ है जिसमें लगभग १०० दोहे हैं। २-अनुभवप्रकाश ---वेदांत विषयक छोटा ग्रंथ है। ३-पानंदविलास-वेदांत विषयक ग्रंथ है और इसका निर्माणकाल सं० १७२४ है। -भाषाभूषण-अलंकार विषयक ग्रंथ है। ५-सिद्धांतबोध-वेदांत विषयक ग्रथ है। ६-प्रबोध-चंद्रोदय नाटक, -संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ का भाषांतर है। ७-सिद्धांतसागर-वेदांत विषयक ग्रंथ है। ५-विनीत निवेदन भाषाभूषण अलंकार का एक प्रसिद्ध तथा उपयोगी ग्रंथ है। इसके बहुत से टीकाकार हुए हैं, जिनमें तीन का उल्लेख किया जा चुका है। सिंगरामऊ के महाराज रणधीर सिह 'शिरमौर' ने भूषण कौमुदी नामक टोका लिखी है, जो अब अप्राप्य है । हरिचरणदास ने भी एक टीका लिखी है, जिसका कोई विशिष्ट नामकरण नहीं किया गया है । भाषाभूषण की इतनी प्रसिद्धि उचित हो है। एक एक दोहे में अलंकारों का लक्षण तथा उदाहरण दोनों ही देना इसके ग्रंथकर्ता के पूर्ण कवित्वशक्ति का परिचायक है । साथ ही भाषा भी कहीं क्रिष्ट नहीं होने पाई है और न पढ़ने ही में कहीं अरुचिकर हुई है। छंद के इतने छोटे होने के कारण कहीं कहीं अर्थ स्पष्ट नहीं था पर डा. निअर्सन ने उन कठिनाइयों को अपने अनुवाद में हल कर दिया है। भाषाभूषण का संस्करण डा. ग्रिपर्सन द्वारा संपादित लाख-
- इसकी एक अपूर्ण प्रति संपादक के पुस्तकालय में है, जो सं० १७६० • वि.
की लिखी है । पत्राकार है पर बीच के पांच पृष्ठ नहीं हैं।