( १८ ) लौटे और यहाँ भी कुछ दिन ठहर कर दारा की राह देख जोधपुर चले गए। दारा गुजरात में सेना एकत्र कर रहा था । उससे इन्होंने पत्र व्यवहार कर अपनी सहायता का वचन दिया पर जब वह युद्धार्थ दिखी की ओर बढ़ा तब मिर्जाराजा जयसिंह के मध्यस्थ होने पर औरंगजेब ने जसवंतसिंह को क्षमापन तथा गुजरात की सूबेदारी देकर अपनी भोर मिला लिया। चार वर्ष तक गुजरात को सूबेदारी करने के अनन्तर ये सं० १७१६ में शायस्ता खों के साथ शिवाजी को दमन करने दक्षिण भेजे गए। ये शिवाजी से हिंदू होने तथा उनके देश प्रेम के कारण सहानुभूति रखते थे। पना में शायस्ताखों की दुर्दशा होने पर औरंगजेब ने उसे बंगाल भेज दिया और उसके स्थान पर शाहजादा मुअज्जम को नियत किया । इस प्रकार दो तीन वर्ष व्यतीत होने पर ये राजधानी बुला लिए गए । सं० १७२४ में ये पुनः शाहजादा मुअज्जम के साथ दक्षिण भेजे गए पर वहाँ भी औरंगजेब के विरुद्ध मुअज्जम को उभालने के दोष के कारण ये राजधानी बुला लिए गए और इन्हें काबुल की सूबेदारी मिली। यहीं जमरूद में इनकी सं० १७३५ में मृत्यु हो गई । इनके पुत्र पृथ्वीसिंह को औरंगजेब ने विष- परित खिल्लत देकर मार डाला था और दो छोटे पुत्र काबुल की सर्दी से वहीं कालकवलित हो गए। मृत्य के समय इनको एक रानी गर्भवती थीं, जिनसे अजीतसिंह पुत्र हुए और जिन्होंने अपने तथा अपने सरदारों के तीस वर्ष के निरन्तर स्वातंत्रय युद्ध पर अपना राज्य लौटा पाया था। महाराज जसवंतसिंह स्वयं कवि तथा कवियों के प्राश्रयदाता थे । बारहठ नरहरिदास चारण, सूरति मिश्र, जगजी चारण, केशवदास चारण आदि इनके दरबार में रहते थे। महाराज के रचे हुए सात ग्रंथों का पता खोज में चला है, जिनके नाम नीचे लिखे जाते हैं-
पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।