निष्फल-प्रयत्न हुई । सं० १७१४ में शाहजहाँ के रोगग्रस्त होने पर उसके चारों पुत्र दिल्ली के तहत पर अधिकार करने की चेष्टा करने लगे बड़े पुत्र दारा के हाथ में उस समय राज्य की बागडोर थी और उसने अपने अन्य भाइयों का मार्ग रोकने को जो ससैन्य दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे सेनाएँ भेजीं। दक्षिण से औरंगजेब और गुजरात से मुगद बख़्श ने बढ़ाई की और इन दोनों ने माग में मिलकर दिल्ली की ओर प्रस्थान करने का विचार किया । दारा ने महाराज जसवतसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त कर इन दोनों शाहजादों को रोकने को भेजा था ! शाह- जहाँ ने, जिनके यह विशेष कृपापात्र थे. इन्हें गुप्त रूप से प्राज्ञा दी थी कि वे उन शाहजादों को यथासभव विशेष हानि पहुँचाने का प्रयत्न न करेंगे। जसवतसिंह ने इस विचार से कि दोनों शाहजादों को एक साथ ही पराजित करेंगे उन्हें सम्मिलित होने का अवसर दे दिया। साथ ही दिल्ली से श्राई मुसलमान सेना के औरंगजेब से मिल जाने के कारण अंत में युद्ध का फल यही हुमा कि महाराज जसवतसिंह परास्त होकर अपने राज्य को लौट गए। औरंगजेब ने दारा युद्ध में पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और शाहजहाँ तथा मुरादबख्श को कैद कर शुजा से युद्ध करने को बंगाल की ओर बढ़ा। कुटिल नीतिज्ञ औरंगजेब ने राह विचार कर कि एक प्रसिद्ध सेनाध्यक्ष को, जो दारा की सहायता कर असे फिर से युद्ध को तैयार कर सकता है, अपना शत्रु बनाकर पीछे छोड़ युद्धाथ आगे बढ़ना उचित नहीं है जयपुराधीश महाराज जयसिंह के द्वारा जसवतसिह को समापन भेज कर बुलवा लिया और अपने साथ जिवाता गया। खजुहा के युद्ध में भी जस तसिह ने शुजा से मिलकर औरंगजेब को नीचा दिखलाना चाहा पर शुजा के अवसर पर न पहुँचने से वे सफल. प्रयत्न नहीं हुए। औरंगजेब ने इन्हें सेना के दाहिने भाग में स्थान दिया था पर ये उसी पडयंत्र के अनुसार रात्रि को बादशाही कैंप लूटते मागरे को सामूगड़ .
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