, तथ्य-धर्म के निषेधपूर्वक अतथ्य को प्रारोपित करना अपहुति है। जैसे, यह चन्द्रमा नहीं है, अाकाश गंगा का कमल है। ( भाषाभूषण) धर्म दुरै आरोप तें शुद्ध अपह्नुति जानि । उर पर नाहिं उरोज ए कनक लता फल मानि ॥ पर्यस्तापहृति ( चन्द्रालोक ) पर्यस्तापहतियत्र धर्ममात्रं निषिध्यते । नायं सुधांशुः किं तर्हि सुधांशुः प्रेयसी मुखम् । र भाषाभूषण) पर्यस्त जु गुन एक को और विर्ष अारोप । होइ सुधाधर नाहिं यह बदन सुधाधर-भोप ॥ भ्रान्तापहुति ( चन्द्रालोक) भ्रान्तापह्नतिरन्यस्य शंकया तथ्यनिर्णये । शरीरे तव सेोरकं ज्वरः किं न सखि स्मरः । ( भाषाभूषण ) भ्रान्ति अपहृति वचन सों भ्रम जब पर को जाइ । ताप करत है, ज्वर नहीं, सखी मदन तप माइ॥ छेकापहृति ( चन्द्रालोक) छेका पह्नुतिरन्यस्य शंकया तथ्यनिह्नवे । प्रजरुपन्मत्पदे लग्नः कांतः किं नहि नूपुरः ॥ अर्थ-शंका करके तथ्य को छिपाना छेकापह्नुति है । जैसे, ( नायिका कहती है कि ) मेरे पैरों से बातचीत में संलग्न है। ( तब सखी पूछती है कि ) कौन पति ? ( तब नायिका लजा या डर से उत्तर देती है कि ) नहीं, नूपुर । .
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