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(E ) . । -वाक्य. (२) विरोध-मूल -जब दो पदार्थों का कार्य-कारण में विच्छेद होने से पारस्परिक विरोध प्रकट हो तो वह विरोधमूलक सिद्धांत कहलाएगा। इतकतर्गत विरोधाभास, विभावना, विशेषोक्ति, असभव, भसंगति, विषम, विचित्र और व्याघात अलंकार हैं। ३ शृंखलामूल-... जब दो या उससे अधिक वस्तुओं का क्रम से वर्ण हो और ते श्रृंखला के समान एक दूसरे से संबद्ध हों। इस सिद्धांत के अनुसार कारणमाला, एकावली, मालादीपक और सार अलंकारों का निर्माण हुश्रा न्यायमूल जन तर्क, लोक-प्रमाण या दृष्टांतादि से युक्त बाका द्वारा चमत्कार या रोचकता उत्पन्न की चाय । इसके अंतर्गत भी बहुत से अलंकार हैं, इसलिए इसके भी तीन उपभेद किए जाते हैं: याय मृल. लोक-न्याय मूल और तर्क न्यायमूल । १ क ) वाक्य-न्यायमूल जब थाक्यों में शब्दों के विशेष क्रम से अथवा दो वाक्यों को विशेष संबंध से सम्मिलित कर रोचकता या चमकार की प्राणप्रतिष्ठा की जाय । इसके अंतर्गत यथासंख्य, पर्याय, परिसख्या. विकल्प, समुच्चय, कारकदीपक, काव्यापत्ति संभावना मिथ्याध्यसिस, हालत और चित्र अलंकार भाते हैं। । ख) तर्क न्याय-मूल -जब कारण आदि देकर तक से कुछ विशे- पता स्थापित की जाय । काव्यलिंग, अर्थातरम्यास, विकस्वर, प्रौढाक्ति, छेकाक्ति, प्रतिषेध, विधि, हेतु और निरुक्ति अलंकार इसी सिद्धांत पर व्युत्पन्न हुए हैं। (ग) लोक-न्याय - ब-जब प्रचलित लोक-व्यवहार के प्रयोग से चमत्कार उत्पञ्च हो-जैसे, परिवृत्त, समाधि, प्रत्यनीक, सम, तद्गुण, पूर्व- रूप, अनुगुण, अतद्गुण, सामान्य, विशेषक, उन्मीलित, मोलित और भाविक अलंकरों में होता है इन अलंकारों के अतिरिक्त भाषाभूषण में विषाद, उन्नास, अवज्ञा, . . -