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( २ ) . सीस मुकूट, कर में लकुट, उर वनमाल रसाल । जमुना तीर तमाल ढिग मैं देख्यो नंदलाल ॥ इस दोहे के शब्द अपने मुख्य अर्थ ही को प्रकट कर रहे हैं, इसलिए उनकी अभिधा शक्ति ही केवल उबुद्ध हुई है । बहुत से शब्द अनेकार्थी भी होते हैं और उनमें से एक ही अर्थ का निर्णय किसी वाक्य में इसी शक्ति द्वारा किया जाता है। इसके निर्णय के लिए शास्त्रकारों ने बारह प्रकार बतलाए हैं, जिनमें साहचर्य, औचित्य, विरोध आदि प्रमुख हैं। और भी अनेक कारण हो सकते हैं पर उन सब के स्पष्टीकरण के लिए यहाँ स्थानाभाव है। जब वाक्य में किसी शब्द के मुख्यार्थ के सुसंगत न होने पर प्रसिद्धि (रूहि ) के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन के लिए अन्य अर्थ की कल्पना ( मुख्यार्थ से संबंध रखते हुए ) करनी पड़ती है तब उस शब्द की लक्षणा शक्ति का प्रयोग किया जाता है। रूदि (प्रसिदि ) ौह प्रयोजन के अनुसार अर्थ-कल्पना करने से लक्षणा के दो भेद हुए । रूदि का उदाहरण लीजिए- फस्यो मनोरथ रावरो, मोहिं परत पहिचान । प्रफुलित नयन विलोकियत, अंग अंग मुद खानि ॥ इस दोहे में मनोरथ के फलने और नेत्र के फूलने का उल्लेख किया गया है पर फलना फूलना वृक्षादि का काम है न कि मनोरथ और नेत्र का । मुख्यार्थ के सुसंगत न होने पर लक्षणा से उनका अर्थ पूरा होना और प्रसन्न होना लिया गया है, जो कवि-समाज में रूढ़ि सा मान लिया गया है। प्रयोजनवती लषणा के कई भेद हैं। पहले दो भेद हैं-शुखा और गौणी। फिर प्रथम के उपादान, लक्षण, सारोप और साध्यवसाना चार भेद किए गए और गौणी अर्थात् द्वितीय के सारोप और साध्यवसाना दो भेद किए गए । अब प्रत्येक भेद के अलग अलग लक्षण और उदाहरण दिए जाते हैं।