शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—अपने प्रिय के उपस्थित न रहते हुये भी अत्यंत उत्सुकता से-उसी की याद कर चर्चा करते रहना प्रलाप कहलाता है।
उदाहरण
सवैया
पुकारि कही मैं दही कोइ लेउ, यही सुनि आइ गयो उत धाई।
चितै कविदेव चलेई चले, मनमोहनी मोहनी तान सी गाई॥
न जानति और कछू तबतें, मनमाहि वही पै रही छबिछाई।
गई तौ हती दधि बेचन वीर, गयो हियरा हरि हाथ बिकाई॥
शब्दार्थ—उतधाई—उधर दौड़कर। मनमाँहि—मन में। गई......बिकाई—हे सखी! मैं बेचने तो दही गयी थी परन्तु उनके हाथ अपने हृदय को बेच आयी।
४—उद्वेग
दोहा
जहँ प्रिय जन के अनमिले, होइ अनादर प्रान।
भली वस्तु नागा लगे, सो उद्वेग बखान॥
शब्दार्थ—नागा—बुरी।
भावार्थ—अपने प्यारे के वियोग में कुछ भी अच्छा न लगने को उद्वेग कहते हैं। ऐसी अवस्था मे भली वस्तुएँ भी बुरी प्रतीत होती हैं।
कवित
बिरह के घाम ताई बाम तजि धाम धाई,
पाई प्रतिकूल कूल कालिदी की लहरी।