शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—पति को वश में करने के लिए शृंगार युक्त सब अंगों को सुकुमारता से रखने को ललित हाव कहते है।
उदाहरण
सवेया
पूरि रहै पहिले पुर कानन, पान के गौन सुगन्ध समाजनि।
गान सों गुंज निकुज उठे, कविदेव सुभौरनि की भई भाजनि॥
दूरि ते देखी मसाल सी, बाल मिली मुख भूषन बेष बिराजनि।
जानि परि वृषभान सुता जब कान परी बिछियान की बाजनि॥
शब्दार्थ—दूरि तें—दूर से। मसाल सी बाल—सुन्दर युवती। बिछियान की बाजनि—बिछियों का बजना।
१०—विहित
दोहा
ब्याज लाज तें चेष्टा, औरे और बिचारु।
पूरे पिय अभिलाष तिय, ताही बिहित बिचारु॥
भावार्थ—लज्जावश अपने मनोरथ को प्रकट न कर किसी मिस से प्रेमी की इच्छा पूर्ति करने को विहित हाव कहते हैं। यह दो तरह का होता है—व्याज और लाज।
उदाहरण पहला (व्याज)
सवैया
वृषभान की जाई कन्हाई के कौतुक, आई सिंगार सबै सजि कैं।
रस हास हुलास बिलासनि सों, कविदेव जू दोऊ रहे रजि कैं॥