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हाव
आवति लोक की लाज के काज, यही मिस सौतिन कौ सुख छोले।
श्याम के अंग सौं अंग लगावै न, रंग में संग सखीन के डोले॥
शब्दार्थ—चितौती—देखती है। चितुदै—मनलगाकर। छोले—नष्ट करती है।
७—कुट्टमित
दोहा
कुच ग्राहन रददान ते, उतकण्ठा अनुराग।
दुखहू मैं सुख होइ जहँ, कुटमित कहैं सभाग॥
शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—कुच ग्रहण अथवा रदच्छद आदि के कारण उतकंठित हो कर मनही मन सुखी होने पर भी ऊपर से मिथ्या दुःख प्रकट करने को कुट्टमित हाव कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
नाह सो नाहीं ककै सुख सो सुख, सो रति केलि करै रतिया मैं।
देत रदच्छद सी सी करै, कर ना पकरै पै बकै बतिया मैं॥
देव किते रति कूजित के तन, कम्प सजे न भजे छतिया मैं।
जानु भूजानहू कों भहरावति, आवते छैल लगी छतिया मैं॥
शब्दार्थ—नाह-पति। रतिकेलि—कामक्रीड़ा। रतिया मैं—रातमें।