पूरन पूरब पुन्यन ते बड़भाग, विरंचि रच्यौ जन सोऊ।
जाहि लखैं लघु अंजन दै, दुखभंजन ये दृगखंजन दोऊ॥
शब्दार्थ—घटानु .....छटासी—बादलों के बीच बिजली के सदृश। पूरन—पूर्ण। पूरब पुन्यन तें—पूर्व जन्म कृत पुण्यो से। दुःख भंजन—दुःख को नाश करनेवाले। दृगखंजन—खञ्जन पक्षी जैसे नेत्र।
३—विच्छित्ति
दोहा
सुहाग रिस रस रूप तै, बढ़ै गर्व्व अभिमान।
थोरेई भूषन जहाँ, सो विच्छित्ति बखान॥
शब्दार्थ—थोरेई—थोड़े से।
भावार्थ—अपने भाग्य, रुपादि तथा अपने अपार सौन्दर्य के कारण थोड़े ही शृंगार से अधिक शोभा प्राप्त करने के कारण गर्व होना विच्छित्ति हाव कहलाता है।
उदाहरण
सवैया
भाग सुहाग को गर्व बढ़ौ, सु रहै अभिमान भरी अलबेली।
वेसरि बंदिन केसरि खौरि, बनावै न सेदुर रंक सुहेली॥
भूलेहूँ भूषन बेषु न और, करै कहि देव विलास की बेली।
मोहनलाल के मोहन कौ यह, पेंधति मोहनमाल अकेली॥
शब्दार्थ—वेसरि—नाक का आभूषण विशेष। केसरि खौरि—केसर का तिलक। मोहनलाल....अकेली—श्रीकृष्ण को रिझाने के लिए केवल मोहनमाला ही पहनती है।