यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५७
आंतर संचारी-भाव

सोने के समान सुन्दर शरीर। कान्ह......लपिटानी—कृष्ण अचानक कह उठे कि देखो शरीर में सापिन लपट गयी। धाइकों.....अपानी (यहसुन) वह घबड़ायी हुई दौड़ी और दोनों हाथों से शरीर को झाड़ने लगी।

उदाहरण दूसरा (भय)
सवैया

आजु गुपाल जू बाल-बधू सँग, नूतन नूतने कुञ्ज बसे निसि।
जागर होत उजागर नैननि, पाग पै पीरी पराग रही पिसि॥
चीज के चन्दन खोज खुले जहँ, ओछे उरोज रहे उरमें धिसि।
बोलत बात लजात से जात, सुआये इतौत चितौत चहूँ दिसि॥

शब्दार्थ—नूतन—नये, नवीन। पागपै—पगड़ी पर। पीरी—पीली। चितौत चहूं दिसि—चारो ओर देखते हुए।

३३—तर्क
दोहा

विप्रतिपत्ति बिचारु अरु, संसय अध्यवसाइ।
बितरक चौविधि जानिए, भूचलनाधिक भाइ॥

शब्दार्थ—चौविधि—चार तरह के।

भावार्थ—विप्रतिगत्ति, विचार, संशय और अध्यवसाइ ये चार तरह के तर्क कहे गये हैं। (किसी प्रकार के संशय पैदा होने के भाव को ही तर्क कहते हैं)