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आंतर संचारी-भाव
शब्दार्थ—करै छिपाय—छिपाती है।
भावार्थ—अपराध अथवा किसी प्रकार की अनीति कर उसे छिपाने के भाव को शंका कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
या डर हौं घर ही मैं रहौं, कविदेव दुरो नहिं दूतनि को दुख।
काहू की बात कही न सुनी मन, मांहि बिसारि दियो सिगरो सुख॥
भीर मैं भूले भये सखि मैं, जब ते जदुराई की ओर कियो रुख।
मोहि भटू तब ते निस द्यौस, चितौत ही जात चवाइन कौ मुख॥
शब्दार्थ—दुरो—छिपा। सिगरो—सब। निस—रात। द्योस—दिन। चितौत.....मुख—चवाव करनेवालों के मुख को देखते बीतता है। चवाइन—निंदा करनेवाले
४—असूया
दोहा
क्रोध कुबोध बिरोध ते, सहै न यह अधिकारु।
उपजै जहँ जिय दुष्टता, सु असूया अवधारु॥
शब्दार्थ—जिय—हृदय में। अवधार—समझो, जानो।
भावार्थ—दूसरे के सुख को सहन न कर न मन में क्रोध, विरोधादि से दुःख पहुँचाने के भाव को असूया कहते हैं।