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भाव-विलास

 

२६—विरोध
दोहा

जहाँ विरोधी पदारथ, मिलै एकही ठोर।
अलङ्कार सुविरोध बिनु, विष पियूष विष कोर॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ विरोधी पदार्थ एक ही स्थान पर वर्णित हो वहाँ विरोध अलंकार होता है। जैसे अगृत और विष।

उदाहरण
सवैया

आयो बसन्त लग्यो बरसाउन, नैननि तें सरिता उमहे री।
कौ लगि जीव छिपावै छपा मैं, छपाकर की छबि छाइ रहै री॥
चंदन सों छिरके छतिया अति, आगि उठै दुःख कौन सहैरी।
देव जू सीतल मन्द सुगन्ध, सुगन्ध बहौ लगि देह दहै री॥

शब्दार्थ—नैननि तें—आँखों से। सरिता—नदी। उमहेरी—बह रही है।

२७—परिवृत्ति
दोहा

जहाँ बस्तु बरननि पदनि, फिरि आवतु है अर्थ।
ताही सों परिवृत्ति कहि, बरनत सुमति समर्थ॥

शब्दार्थ—सुमति—बुद्धिमान।

भावार्थ—जहाँ पर (सम, कम या अधिक) वस्तुओं के बदले में (सम, कम या अधिक) वस्तुओं को लिया जाय उसे परिवृत्ति अलंकार कहते है।