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अंलकार


भावार्थ—जहाँ अर्थ की पुष्टि के लिए कोई और वाक्य कहा जाय वहाँ अर्थान्तरन्यास होता है।

उदाहरण
सवैया

चैन के ऐन ये नैन निहारत, मैन के कोउ कर मैं न परै री।
तापर नैसिक अञ्जन देत, निरञ्जनहू के हिये कों हरै री॥
साधुओं होइ असाधु कहू, कविदेव जो कारे के संग परै री।
स्याही रह्यो अरु स्याह सुतौ, सखी आठहू जाम कुकाम करै री॥

शब्दार्थ—ऐन—स्थान, घर। मैन—कामदेव। नैसिक—थोड़ा, नेक। निरञ्जन—निष्काम, स्याह—काला। आठहूजाम—आठो याम, रात दिन।

२२–२३—अप्रस्तुति प्रशंसा और व्याजस्तुति
दोहा

 
जहाँ सु अप्रस्तुति अस्तुती, निंदा की अचान।
निंदै और जहाँ सराहियै, सो व्याजस्तुति जान॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ प्रस्तुत के वर्णन करने के लिए अप्रस्तुत का वर्णन किया जाय वहाँ अप्रस्तुत प्रशंसा और निंदा के बहाने स्तुति की जाय वहाँ व्याजस्तुति अलंकार होता है।

उदाहरण (अप्रस्तुति प्रशंसा)
सवैया

बड़भागिन येई बिरंच रची, न इतौ सुख आन कहूँ तिय के।
बिछुरै न छिनौ भरि बालम ते, कविदेव जू संग रहैं जिय के॥