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भाव-विलास
जहाँ काव्य के पदनि मै, उपजै अरथ अनंत।
अलंकार अश्लेष सो, बरनत कवि मतिमंत॥
शब्दार्थ--पदनि-पदो मे।
भावार्थ-जहाँ काव्य के पदो मे अनेक अर्थ निकलें वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
ऐसौ गुनी गरे लागतही न, रहै तन मै सनताप री एकौ।
देव महारस बास निवास, बड़ो सुख जा उर बास किये को॥
रूप निधान अनूप बिधान, सुप्राननि कौ फल जासो जिये कौ।
सांचेहूँ है सखी नन्दकुमार, कुमार नहीं यह हार हिये कौ॥
[इसमे हार और नन्दकुमार दोनो का वर्णन है।]
शब्दार्थ--गरे लागतही-गले लगतेही। एकौ एक भी। साँचेहू .....हिये कौ-हे सखी, यह नन्दकुमार नहीं, मेरे हृदय का हार है।
युक्त अरथ दृढ़ करन कों, वाक्य जु कहिये और।
सो अर्थान्तरन्यास कहि, बरनत रस बस भोर॥
शब्दार्थ -- सरल है।