शब्दार्थ—विमल-निर्मल, स्वच्छ। किंकिनी-करधनी, कमर का आभूषण विशेष। जगर मगर-प्रकाशमान। लली वषभान की-राधा।
नून गुनहिं जहँ अधिक गुन, कहिये बरनि समान।
अलङ्कार उपमा कहत, ताही सुमति सुजान॥
शब्दार्थ—नून-न्यून, कम।
भावार्थ—किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु के साथ न्यून अथवा अधिक गुण के कारण, समानता की जाय; उसे उपमा अलंकार कहते हैं।
राति जगी अँगिराति इतै, गहि गैल गई गुनकी विधि गोरी।
रोमबली त्रिबली पै लसी, कुसमी अँगियाहू लसी उर ओरी॥
ओछे उरोजनि पै हँसि कें, कसि के पहिरी गहरी रंग बोरी।
पैरि सिवार सरोज सनाल, चढ़ी मनों इन्द्रवधूनि की जोरी॥
शब्दार्थ—अँगिराति-अंगड़ाती है। गुन की निधि-गुणों की खानि, गुणवती। रोमबली-रोमावलि। त्रिबली-उदर की तीन रेखाएँ। कुसुमी-कुसुम्सी रंग की। पैरि-पहनकर। सिवार-जल में होनेवाली लताविशेष। इन्द्रबधूनि-बीरबहूठी। जोरी-जोड़ी, युग, दो।