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भाव-विलास

अपन्हुति, श्लेष, अप्रस्तुति-स्तुति, व्याजस्तुति, आवृत्तिदीपक, निदर्शना, विरोध, परिवृत्ति, हेतु, उर्जस्वल, रसवत, सूक्षम, प्रेम, क्रम, समाहित, तुल्ययोगिता, लेस, भाविक, सङ्कीर्ण तथा आशिष ये मुख्य ३९ अलङ्कार प्राचीन आचार्यों के मत से हैं। आधुनिक कवियों के मत से इनसे अधिक अलंकार हैं, जो इन्हीं के अनेक भेद और उपभेद कहे जा सकते हैं।

१—स्वभावोक्ति
दोहा

जहाँ स्वभाव बखानिये, स्वभावोक्ति सो नाम।
सुकवि जाति बर्णन करत, कहत सुनत अभिराम॥

शब्दार्थसरल है।

भावार्थजहाँ पर किसी के स्वाभाविक गुण का वर्णन हो वहाँ-स्वभावोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण
कवित्त

आगे आगे आस पास फैलति बिमल बास,
पीछे पीछे भारी भीर भौंरनि के गान की।
तातें अति नीकी किंकिनी की झनकार होति,
मोहनी है मानों मदमोहन के कान की॥
जगर मगर होति जोति नव जोबन की,
देखें गति भलें मति देव देवतान की।
सामुहैं गली के जु अली के संग भली भाँति,
चली जाति देखी वह लली वृषभान की॥