शब्दार्थ—चंदन गारि–चन्दन घिसकर। अंग सम्हारै–शरीर को सजाती है। फूलनि सेज सुधारै–फूलों की सेज सजाती है।
४–कलहन्तरिता
दोहा
पहिले पति अपमान करि, फिरि पीछे पछिताइ।
कलहन्तरिता नाइका, ताहि कहैं कविराइ॥
शब्दार्थ—सरल है।
शब्दार्थ—पहले पति का अपमान करके फिर उसके लिये मन में पछतानेवाली नायिका को कलहन्तरिता नायिका कहते हैं।
५–खण्डिता
दोहा
जाके भवन न जाइ पति, रहै कहूँ रति मानि।
खण्डितबारि सुखण्डिता, कबिवरकहतखानि॥
भावार्थ—जिस स्त्री का पति किसी दूसरी स्त्री के साथ प्रेमकर वहीं रहे, और घर न आवे उस स्त्री को खण्डिता नायिका कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
सेज सुधारि सँवारि सबै अँग, आँगन के मग मैं पग रोपै।
चन्द की ओर चितौति गई निसि, नाहकी चाह चढ़ी चित चोंपै॥
प्रातही प्रीतम आये कहूँ, बसि देव कहीं न परै छबि मोपै।
प्यारी के पीक भरे अधरा ते, उठी मनो कम्पत कोप की कोपैं॥