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भाव-विलास

 

ताते प्रोषितप्रेयसी, अभिसारिका बखान।
आठ अवस्थाभेद ये, एक एक प्रति जान॥

शब्दार्थ—सरल है।

शब्दार्थ—स्वाधीना, उत्कण्ठिता, बासकसज्जा, कलहन्तरिता, खण्डिता, विप्रलब्धा, प्रोषितप्रेयसी और अभिसारिका अवस्था भेद से ये आठ प्रकार, नायिकाओं के और होते हैं।

१–स्वाधीना
दोहा

बँध्यौ रहै गुन रूप सों, जाको पति आधीन।
स्वाधीना सो नाइका, बरनत परम प्रवीन॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—रूप और गुणों के कारण जिसका पति सर्वदा उसके अधीन रहे, उस नायिका को स्वाधीनपतिका नायिका कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

मालिनि ह्वै हरि माल गुहैं, चितवे मुख चेरी भये चित चाइनि।
पान खवाबै खवासिन ह्वै के, सवासिन ह्वै सिखवैं सब भाइनि॥
बैदी दै देव दिखाइ के दर्पन, जावक देत भये अब नाइनि।
प्रेमपगे पिय पीतपटी पर, प्यारी के पोछिय मारी से पाइनि॥

शब्दार्थ—मालिनि ह्वै–मालिनि बनकर। माल गुहैं–माला गूँथते हैं। खवासिन–पान खिलानेवाली। बैंदी दे–मस्तक पर बिंदी लगाकर। दिखाइकें दर्पन–दर्पण दिखलाकर। जावक–महावर। पाइनि–पैर।