वैस्या
दोहा
रीझ नहीं गुन रूप की, सामान्या के जीय।
जौही लों धन देइ जो, तो लौं ताकी तीय॥
शब्दार्थ—जीय–मन, हृदय। तीय–स्त्री।
भावार्थ—रूप अथवा गुण पर मोहित न होकर केवल धन पर अपने को निछावर कर देनेवाली स्त्री वेश्या कहलाती है। मनुष्य जब तक उसे धन देता रहे तब तक वह उसकी प्रेमिका बनी रहती है।
कवित्त
सोहति किनारी लाल बादला की सारी,
गोरे अङ्गनि उज्यारी कसी कंचुकी बनाइ कें।
जेवर जड़ाऊ जगमगत जवाहिर के,
जूती जोती जावक की जीती पग पाइ कें॥
भौंहनि भ्रमाइ भूरि भाइ करि नैनन सों,
सैननि सौं बैननि कहति मुसक्याइ कें।
चीकनी चितौनि चारु चेरे करि चतुरनि,
बितु लियो चाहै, चितु लियो है चुराइ के॥
शब्दार्थ—जेवर–गहने, आभूषण। जड़ाऊ–जड़े हुए, रत्नाठित जावक-महावर। चेरे-गुलाम। अधीन–वश में।
दोहा
पररतिदुःखित प्रेम अरु, रूप गर्व्विता जानु।
मानवती अरु चारि विधि, स्वीयादिकनु बखानु॥
शब्दार्थ—अरु–और। चारि विधि–चार तरह की।