शब्दार्थ और भावार्थ—दोनों सरल हैं।
सवैया
सब ऊजर भौन बसे तब ते, तरुनी तन तापि रही भरिकें।
सुनि चेत अचेत सी ह्वै चित सोचति, जैहै निकुंज घने झरिके॥
ततकालहिं 'देव' गुपाल गये, बनते बनमाल नई धरिके।
जदुनाथहि जोवत ज्वाल भई, जुवती बिरहज्वर सों जरिके॥
शब्दार्थ—उजार–उजड़े हुए, सूने। भौन–घर। तरुनी–युवतियाँ। जोवत–देखते ही।
च–मुदिता
सवैया
साँझ को कारी घटा घिरि आई, महा झरसों बरसे भरि सावन।
धौरि हूँ कोरिये आइगई सु, रम्हाइ के धाइ के लोगी चुखावन॥
माइ कह्यो कोई जाइ कहै किनि, मोहू सो आज कह्यो उन आवन।
यो सुनि आनन्द ते उठि धाई, अकेलिये बाल गुपाल, बुलावन॥
शब्दार्थ—महाझरसों–मूसलाधार, जोर से। अकेलिये–अकेली।
२–कन्यका
सवैया
झूमि अटा उझकै कहूँ देव, सु दृरि तें दौरि झरोखनि झूली।
हाँस हुलास बिलास भरी मृग, खज्जनि मीन प्रकासनि तूली॥
चारिहू भोर चलै वपलै, जु मनोज की तेगै सरोज सी फूली।
राधिका की अँखियाँ लखिकै, सखियाँ सब संग की कौतिक भूली॥